Chhath Pooja 2022 : छठ पूजा की कहानी क्या है? Story of Chhath pooja

Shashi Kushwaha
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नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम जानेंगे छठ पूजा के बारे में कुछ विशेष बातें जैसे छठ पूजा क्या है, छठ पूजा कैसे मनाते हैं, छठ माता कौन है और छठ पूजा का शुरुआत कैसे हुआ. इन सब बातों के बारे में जानेंगे Chhath pooja 2022 hindi poetry के माध्यम से 

Chhath Pooja 2022 : छठ पूजा की कहानी क्या है? Story of Chhath pooja. Hindi Poetry
एक कहावत है कि दुनिया उगते हुए सूरज को सलाम करती है। we salute the rising sun अंग्रेज भी कहा करते थे कि ब्रिटिश राज्य में सूरज कभी अस्त नहीं होता। एक कव्वाली भी सुनी है। चढ़ता सूरज धीरे-धीरे ढलता है, ढल जाएगा। ऐसा लगता है जैसे सूरज का ढलना कमजोरी का प्रतिक है, कोई गलत बात है, खराब बात है, अशुभ है, यूरोप और अरब के देशो में ऐसा मानते होंगे। हम भारतवासी नहीं मानते। हम डूबते हुए सूरज को भी पूजते हैं। हमारे लिए पश्चिम में अस्त होता सूर्य उतना ही स्राह्देह है जितना पूर्व में उदय होता हुआ सूर्य | क्योंकि सूर्य देवता है और दिशा बदलने से देवता के लिए हमारा भाव नहीं बदल जाता। बड़ी बात है। सूरज का सूरज होना, तेजो राशे जगत्पते होना, सृष्टि और जीवन का आधार होना 


सूरज हूं। जिंदगी की चमक छोड़ जाऊंगा। मै डूब भी गया तो चपक छोड़ जाऊंगा। 


    छठ पर्व क्या है?

    हर साल दीपावली के छठवें दिन तिथियों की भाषा में कहूं तो कार्तिक शुक्ल पक्ष की छठवीं तिथि को 30 करोड़ भारतवासी अस्त होते हुए सूर्य देवता के आगे नतमस्तक हो जाते हैं और सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ देते हैं। भारत के नस नस में बसा हुआ यह त्यौहार छठ पूजा कहलाता है और दुनिया भर में मनाए जाने वाले बड़े से बड़े त्यौहार का संगीत फीका पड़ जाता है। जब यूपी बिहार झारखंड की माताएं अपने बेटे बेटियों की लंबी उम्र की कामना करते हुए एक स्वर में गा उठती  हैं। कांचे ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए होई ना बलम जी कहारीयां बहंगी घाटे पहुंचाए। 

    मैं समझता हूं, इतना करुन इतना संवेदनशील है। इतना मन को छू लेने वाला इतना माटी से जुड़ा हुआ और इतना भावना से भरा हुआ गीत सायद ही कोई दुसरा हो.  


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    छठ माता कौन है। 

    इसके बारे में अलग-अलग धर्नाये है पुराणों में, नवरात्रि में पूजी जाने वाली मां कात्यायनी को ही छठ माता कहा जाता है। सनातन धर्म में उन्हें भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। मानस पुत्री यानी वो बेटी जिसके जन्म में शरीर की कोई भूमिका न हो। मन से मन का मिलन हुआ। तरंगे टकराई ब्रेन की एनर्जी मिल गई और संतान का जन्म हो गया। हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्मों में म्युटेंस का जन्म ऐसे ही होता है। हम विश्वास भी कर लेते हैं, लेकिन हजारों साल पहले वेदों पुराणों में लिखी गई। यह बातें हमको अविश्वसनीय लगती हैं। कोरी कल्पना लगती है। एक बार ठहर के सोचीयेगा  कि आगे बढ़ने की अंधी दौड़में हम कितना? पीछे जा चुके हैं।


    अपने सच को झूठ मानते हैं और दूसरों के झूठ को सच मै एक ऐसे युवा भारत का सपना देखता हूं जो दिन भर इसरो में बैठकर अंतरिक्ष में रॉकेट भेजे। लेकिन रात को सोने से पहले श्रीमद भगवत गीता के दो पन्ने पढ़ कर हीआंखें बंद करें। मॉडर्न होने का मतलब मूर्ख होना नहीं है और विश्वास मानिए। अगर हम अपने रीति रिवाजों से अपनी संस्कृति से अपने ग्रंथों से अपने पूर्वजों से कट गए तो हमें और खूंटे से बंधे हुए एक जानवर में कोई अंतर बाकी नहीं रह जाएगा। हम पशु हो के संतुष्ट हैं या प्रभु होने की यात्रा पर निकलना चाहते हैं। यह निर्णय  हमें आज लेना होगा। अब भी लेना होगा वरना बहुत देर हो जाएगी। 


    वपस लौटे हैं छठ पूजा की ओर 

    यह पूजा पहली बार कब शुरू हुई थी,

    ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता,लेकिन ऐसे उल्लेख मिलते हैं कि महाभारत काल में द्रोपदी छठ माता की पूजा किया करती थी। बिहार का एक जिला है भागलपुर, महाभारत काल में इसे अंग देश के नाम से जाना जाता था और इसके राजा थे। सूर्यपुत्र कर्ण अंगराज कर्ण, कर्ण भी छठ पूजा किया करते थे। ऐसा पढ़ने में आया है। अब कर्ण तो थे ही सूर्य  के पुत्र, तो सूर्य उपासना और पिता की उपासना कर्ण के लिए दोनों का एक ही अर्थ था, कहते हैं। उस दिन कुरुक्षेत्र में जब अर्जुन के तीरों से बिनध कर कर्ण  वीरगति को प्राप्तहुए तो आकाश पर चमकता हुआ सूर्य रो पड़ा, अपने पुत्र की मृत्यु सूर्य देव सहन नहीं कर पाए।

    फिरे आकाश से सूर्यांश सारे नता नंद देवता नव से सिधारे। छिपे आदित्य होकर आद्र घन में उदासी छा गई। सारे भूवन में 


    ये था कर्ण और सूर्य का संबंध है। लेकिन हम भी सूर्य को पिता ही मानते हैं और इस नाते हमारे अंदर भी एक कर्ण सास ले रहा है। मैं और आप भी कर्ण की ही छाया है. छठ पूजा पर जब हम सूर्य को अपना प्रणाम निवेदित करते हैं तो यह आदर सिर्फ एक भक्त भगवान को नही दे रहा एक पुत्र अपने पिता को भी दे रहा है। इसलिए छठ पूजा सिर्फ एक उत्शाव नहीं हजारों वर्ष पुराने एक संबंध की मौन घोषणा भी है। यह दुनिया जान ले कि हर भारतवासी सूर्य की संतान है। हम सूरज की तरह तपना भी जानते हैं और सूरज की तरह चमकना भी जानते हैं। दुनिया की ऐसी कोई ताकत नहीं जो सूरज को फूंक मारकर बुझा सके। जब कहीं कुछ नहीं था तब भी हम थे और जब कहीं कुछ नहीं होगा तब भी हम होंगे। 


    मैं मुंबई में रहता हूं और मेरे जैसे लाखों उत्तर भारतीय यहां रहते हैं। हर साल जैसे-जैसे छठ पूजा नजदीक आती जाती है। मैं देखता हूं कि मुंबई में उत्तर भारतीय कम हो रहे हैं। मुंबई उत्तर भारतीयों से खाली हो रही है।ऑटो वाले मातादीन और चार्ट वाले बटेश्वर भैया से लेकर मनोज मुंतशिर तक सब गांव का टिकट कटा के चल चल देते है और क्यों चल देते हैं क्योंकि छठ पूजा साल का अकेला ऐसा पर्व है जब मिट्टी और माँ दोनों मिलकर एक साथ हमें आवाज देते हैं। घर आजा बेटा छठ मां के लिए यह जो कच्चे बांस की बहंगी बनाई है, यह नदी के घाट तक तुझे ही तो ले जानी है। एक बार मां का यह संदेशा मिल जाए। फिर तो हम काल के रुके भी नहीं रुकते. 

    पिपरा के सरीखे डोले मनवा जियारा में उठे हिलोर पुरवा के झोंकों से आयो रे संदेशवा की चल आज देशवा की  ओर,

    और एक बार हम अपने गांव देश पहुंच गए तो शुरू होता है छठ पूजा का चार दिवसीय कार्यक्रम पूरे 4 दिन क्या धूम क्या गहमागहमी क्या उलाश लगता ही नही कि दिवाली जा चुकी है। क्या होता है इन 4 दिनों में उनको बताने की जरूरत नहीं है जो आज भी अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं, लेकिन जिनकी जुड़े टूट गई है उन से मेरी प्रार्थना है। अगले 2 मिनट तक शांति के साथ इसे पढ़ ले और जान ले कि छठ की परंपरा है क्या, और क्यों मैं बार-बार कहता हूं कि पूरी दुनिया में ऐसा उत्सव कोई दूसरा नहीं है। शायद आपकी सोई हुई जुड़े जाग उठे और आपका अगली  छठ अपने गांव में मनाए। 


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    छठ का पहला दिन इसे कहते हैं 

    नहाए खाए पूरे घर की अच्छे ढंग से सफाई की जाती है। घर के सभी लोगों को सात्विक भोजन परोसा जाता है। सारा धयान सिर्फ पवित्रता पर होता है।

    छठ के दूसरे दिन

    लोग साफ किए हुए चौके बर्तन से छठ का प्रसाद बनाते हैं। छठ का प्रसाद सुनते ही अगर आपके मुंह में पानी आ गया तो आपका कोई दोस्त नहीं है। मेरा भी यही हाल है। ठेकुआ, अब क्या बताएं ठेकुआ क्या होता है और कैसा होता है। मैंदे और बेसन में गुड़ मिलाकर ठेकुआ बनता है और उसका स्वाद देवराज इंद्र के स्वर्ग भुज में भी नहीं आएगा। यह बात में विश्वास के साथ कह सकता हूं। ठेकुआ जितना खस्ता बने उतना अच्छा मेरे बहुत सारे ऐसे दोस्त हैं जो एक ठेकुवा के लिए 56 प्रकार के व्यंजन छोड़ सकते हैं। ठेकुआ बनाने के बाद शाम को एक विशेष पकवान बनाया जाता है। जिसे लौकिदल कहते हैं देश के अलग-अलग भागों में इस लौकी दाल का रंग रूप बदल जाता है। कहीं लौकी दाल है तो कहीं गुड वाली खीर यानि बखीर। तो जम के लौकी दाल खाओ और 


    अगले दिन के निर्जल व्रत के लिए तैयार हो जाओ। पूरे दिनपानी की एक बूंदभी नहीं मिलने वाली यह जो निर्जला व्रत का दिन है, यही छठ का मुख्य दिन हो, दिन भर पानी के दर्शन नहीं होते। होठ रेगिस्तान की तरह सूख जाते हैं और इन्हीं सूखे हुए होठों से अपने बेटे बेटियों के लिए माये ऐसे ऐसे गीत गाती हैं कि आंखें भीग के गंगा जमुना हो जाए। 

    पहले पहल हम कईनी छठी मैया व्रत तोहार करिहा, क्षमा छठी मैया भूल चूक गलती हमार सब के बलकवा के दिहा छठी मैया ममता दुलार पिया के सईया बनैहा मैया दिहा सुख सार”

    यह गीत छठ का व्रत रखने वाली एक ऐसी महिला गा रही है। जो व्रत तो है पर व्रत के सारे नियम कानून नहीं जानती। वो भोलेपन से अनजाने में हुई भूल चूक के लिए छठ मैया से माफी मांग रही है और छठ मैया उसे माफ भी कर देगी क्योंकि इस त्यौहार में श्रद्धा रखने वाले के लिए कोई कर्म कांड नही होता ना कोई मंत्र ना कोई पूजा पद्धति ना कोई पुरोहित ना कोई यज्ञ हवन, जिसे पूजा पाठ कुछ भी नही आता हो  यह त्यौहार उसके लिए भी है 


    फिर नदी या पोखर के किनारे मिट्टी की बेदी बनाकर उस पर आटे से चौका पूरा जाता है। बेदी के चारों कोनों पर ताजा गन्ने या ईख के पौधे को गाड़ दिया जाता है। यह है वह पौधा एक अंश एक हिस्सा है। अब इस गन्ने पर साड़ी गमछा या धोती डाल दी जाती है और बेदी के पास बैठकर महिलाएं अपने मधुर स्वर में छठ गीत गाती है। भोजपुरी मगही मैथिली अंगिका, विजीका जैसी ठेठ लोक भाषा में रची गई गीत ही छठ पूजन का मंत्र है और जिस श्रद्धा जिस आस्था के साथ छठ का निर्जल व्रत कर रही महिलाएं इन गीतों को गाते हैं, मुझे नहीं लगता कि छठ के दिन इन गीतों की शक्ति वैदिक मंत्रों से कोई कम होती होगी। बेदी पर लगाई गई ईख छठ मैया है। कहीं कोई और प्रतिमा नहीं कहीं कोई और पद्धति नहीं। 


    छठ के अंतिम दिन 

    यानी सप्तमी तिथि को एक पहर अंधेरा बाकी रहते ही लोग अपने घरों से निकल पड़ते हैं। अपनी बेदी तक पहुंचने के लिए पिछले शाम की तरह ही बेदी के पास बैठकर गीतों से और प्रसाद से छठ का पूजन करते हैं और सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं। छठ के घाट पर ना कोई अपना होता है ना कोई पराया न कोई जात न कोई पात न छुआ-छूत ना उच-नीच  सभी लोग हर बेदी पर जाकर प्रसाद मांगते हैं। अपनी बेदी के साथ दूसरों की बेदी पर भी सर झुका कर आशीर्वाद लेते हैं। छठ के घाट पर सामाजिक विभाजन की वर्जनाये टूट जाती है। सब की एक ही पहचान होती है। सब छठ मां के बेटे बेटियां हैं। वह दिन ऐसा होता है जब कहीं कोई छोटा-बड़ा और अमीर गरीब नहीं दिखाई देता। दूर-दूर तक सिर्फ एक चीज दिखाई देती है। मनुष्य और उसके चमचमाती हुई मनुष्यता. जितने निष्पाप भावुक प्रेम से भरे हुए समरस हम छठ के अंतिम दिन होते हैं, अगर वैसे ही साल के 365 दिन रह पाए तो भारत को विश्व गुरु बनने से और वसुधैव कुटुंबकम का हमारा स्वप्न साकार होने से कोई रोक नहीं सकता। छठ माता आप पर कृपा करें। आप सुखी हो, समृद्धि  हो और इस बार छठ पर अगर गांव नहीं गए तो अगली बार जरूर जाएं क्योंकि मां और माटी के पुकार अनसुनी नहीं की जाती।


    निष्कर्ष :-

    दोस्तों छठ पूजा 2022 के बारे मैं मैंने पोएट्री के माध्यम से सभी चीजें बताई है अगर इस आर्टिकल में कोई त्रुटि हो गई हो मेरे द्वारा तो उसको क्षमा करें और  कमेंट करके जरूर बताएं, धन्यवाद

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