महंगाई के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रेपो रेट में फिर से बढ़ोतरी का ऐलान किया है. मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को बताया कि रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है. दास ने बताया कि मीटिंग में 4-1 से रेपो रेट बढ़ाने का फैसला किया गया है.
बढ़ोतरी के बाद रेपो रेट 6.25 फीसदी से बढ़कर 6.50 पर पहुंच गया है. रेपो रेट में बढ़ोतरी का सीधा असर होम, ऑटो और पर्सनल समेत तमाम लोन और उसके ईएमआई पर पड़ेगा. 2022 के बाद रेपो रेट में यह लगातार छठवीं बढ़ोतरी है. आरबीआई के मुताबिक पिछले 8 महीने में रेपो रेट में 2.50 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है.
आरबीआई ने 2018 के बाद मई 2022 में रेपो रेट में 0.40 फीसदी, जून 2022 में 0.50 फीसदी, अगस्त 2022 में 0.50 फीसदी, सितंबर 0.50 फीसदी, दिसंबर 2022 में 0.35 फीसदी और अब फरवरी 2023 में 0.25 फीसदी का इजाफा किया है.
रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट क्या होता है?
रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को कर्ज देती है और कर्ज के बदले जो चार्ज लेती है, उसे रेपो रेट कहते हैं. वहीं जब बैंक अपना पैसा आरबीआई के पास रखती है और उसके बदले में जो ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं.
रेपो रेट अगर बढ़ता है तो बैंक कस्टमर को अधिक ब्याज दर पर कर्ज देती है. रिवर्स रेपो रेट उस वक्त बढ़ाया जाता है, जब मार्केट में ज्यादा कैश होता है.
महंगाई कैसे बढ़ती है, अभी स्थिति क्या है?
महंगाई बढ़ने का सारा खेल सप्लाई और डिमांड पर निर्भर करता है. अगर आम आदमी के पास कैश और पैसा होगा, तो सामान खरीदने पर जोर देता है, जिस वजह से डिमांड बढ़ जाती है.
वहीं दूसरी तरफ सप्लाई चेन में रुकावट की वजह से सामानों की आपूर्ति नहीं हो पाती है. इसके और भी कई वजह हो सकती हैं. ऐसे में जब सप्लाई सामान्य तरीके से नहीं हो पाती है, तो महंगाई में बढ़ोतरी होती है.
आरबीआई के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई दर 6.5 फीसदी और अगले वित्त वर्ष 2023-24 में खुदरा महंगाई दर के 5.3 फीसदी तक रहने का अनुमान है. हालांकि, दिसंबर 2022 में महंगाई दर में गिरावट देखी गई थी और यह 5.72 फीसदी पर पहुंच गया था. आरबीआई का लक्ष्य महंगाई दर को 4 फीसदी से नीचे ले जाने का है.
महंगाई का रेपो रेट से क्या है कनेक्शन, 2 प्वॉइंट्स...
1. रेपो रेट बढ़ाने से डिमांड कम होगा- दरअसल, रेपो रेट बढ़ाने के पीछे आरबीआई की कोशिश रहती है कि बैंक आम आदमी द्वारा लिए गए या आगामी लोन का ईएमआई महंगा कर दें, जिससे मनी फ्लो कम हो और डिमांड में कमी आए.
इसे ऐसे समझिए- रेपो रेट बढ़ने के बाद आरबीआई कमर्शियल बैंकों को अधिक ब्याज दर पर कर्ज देगा, तो बैंक भी ब्याज बढ़ाएगा, जिसका असर सीधे आम ग्राहक पर पड़ेगा और डिमांड घट जाएगी.
डिमांड में जैसे ही कमी आएगी, वैसे ही सप्लाई बढ़ेगा और खुदरा महंगाई पर असर होगा. हालांकि, ये पारंपरिक फॉर्मूला पिछले कुछ सालों से ज्यादा काम नहीं कर रहा है.
2. इकॉनोमिक सिस्टम सुधारने की कोशिश- रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों से लोन की डिमांड लगातार बढ़ रही है. इसे कम करने के लिए आरबीआई के पास रेपो रेट बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
दुनिया के अन्य देशों में भी ब्याज दरें बढ़ रही हैं. कुछ पैसे भारत में भी निवेश होता है, जिस पर अधिक ब्याज देना पड़ता है. ऐसे में रेपो रेट नहीं बढ़ाया गया तो इकॉनोमिक सिस्टम ही गड़बड़ा जाएगा.
इस स्थिति में महंगाई पर काबू पाना आसान नहीं होगा. आरबीआई लॉन्ग टर्म को देखते हुए भी कई बार रेपो रेट बढ़ाने का निर्णय लेती है.
रुपए में भी मजबूती आने की उम्मीद
रेपो रेट में बढ़ोतरी के बाद बाजार में आम लोगों के पास जो पैसा होता है, वो बैंकों और फिर आरबीआई के पास आता है. ऐसे में रुपए में भी मजबूती आती है.
पिछले कुछ हफ्तों में डॉलर के मुकाबले रुपए लगातार गिरता जा रहा था. ऐसे में रेपो रेट बढ़ाकर फिर से रुपए में जान फूंकने की एक कोशिश आरबीआई कर रही है.
8 महीने में 6 बार बढ़ोतरी, आगे क्या होगा?
मई 2022 से लेकर अब तक 8 महीने में रेपो रेट में आरबीआई 6 बार बढ़ोतरी कर चुका है. ऐसे में अब सवाल उठ रहा है कि क्या आगे भी इस तरह के बढ़ोतरी होंगे?
उद्योग जगत एसोचैम के महासचिव दीपक सूद समाचार एजेंसी पीटीआई से कहते हैं- मुझे लगता है इस साल की यह आखिरी बढ़ोतरी है. विश्व में जो परिस्थितियां अभी है, उससे निपटने और महंगाई को कम करने के लिए यह फैसला किया गया है.
क्या रेपो रेट में कटौती भी हो सकती है? बैंक ऑफ बड़ोदा के चीफ इकॉनोमिस्ट मदन सबनवीस कहते हैं- चालू वित्त वर्ष यानी 2022-23 में रेपो रेट में कटौती की संभावनाएं कम है. अभी महंगाई के ऊपर जाने का जोखिम हो सकता है, इसलिए आरबीआई ने यह फैसला किया है.
आरबीआई की अगली मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक 3 से 6 अप्रैल, 2023 के बीच प्रस्तावित है. ऐसे में अब जो भी फैसला होगा, वो वित्त वर्ष 2023-24 के नजरिए से ही होगा.